नमस्कार मित्रों,
हमारे कपड़ों के व्यापार
में हस्तकला एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हस्तकला से बनाए गए कपड़े भारत की
अद्वितीय संस्कृति और परंपराओं को जिवित रखते हैं। हस्तकला से निर्मित कपड़ों
में रंगों का संयोजन, विविध डिजायंस
और उम्दा बनावट भारतीय कारीगरों और बुनकरों की कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत
के अन्य राज्यों की तरह गुजरात की हस्तकला भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक
विरासत की विशिष्ट पहचान है। गुजरात की हस्तकला की विविधता विश्वप्रसिद्ध है।
और यह गुजरात की स्थानिक संस्कृति को सुंदर रूप से दर्शाती है। आज हम गुजरात की
कुछ प्रमुख हस्तकलाओं के बारे में संक्षिप्त में समझने का प्रयास करेंगे।
कच्छी एम्ब्रॉयडरी:
गुजरात
के कच्छ क्षेत्र के अहिर, रबाड़ी,
गरासिया जाट, और मतुआ समुदाय द्वारा की जाने
वाली कच्छी एम्ब्रॉयडरी सूती कपड़ों पर रेशमी धागों से की जाती है। आमतौर पर
महिलाओं द्वारा की जानेवाली इस हस्तकला का इतिहास १६ और १७ शताब्दी का है,
जब यह समुदाय सिंध प्रांत से आकर यहां बस गया। कच्छी एम्ब्रायडरी
में विभिन्न प्रकार की डिजायन जैसे फूल पत्तियां, पशु पक्षी,
दैनिक जीवन शैली, आदि आकार को सूती कपडों पर
सेशमी धागों से उकेरा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कच्छ में कुल १६ प्रकार की एम्ब्रायडरी की जाती है,
जिसमें अहीर, आरी, गोतनी
और फकीरानी प्रमुख है। आरी को सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली एम्ब्रायडरी माना जाता
है, जो शाही परिवार के लिए की जाती थी। कपड़ों को चमकाने के
लिए कांच के टुकरों का भी उपयोग किया जाता है।
पाटन का पटोला: गुजरात का
पाटन शहर अपने आप में इतिहास को संजोए हुए है। यह शहर अपनी वास्तुकला के साथ पटोला
साड़ी के लिए मशहूर है। पटोला बंधनी तकनीकी का उपयोग करके बनाई जाती है। पटोला एक
प्रकार की सिल्क साड़ी होती है, जिसमें
आमतौर पर सोने और चांदी के धागों से हाथी,
मोर, कलश, पान, शिखर, तोते, आदि को उकेरा जाता
है। इसे बनाने में बुनकरों को अधिक परश्रम करना पड़ता है, और
समय भी ज्यादा लगता है, जिसके कारण इसकी लागत ज्यादा होती
है और इसका दाम भी ज्यादा होते हैं। मुगल काल में इस कला को करीबन २५० परिवारों
ने अपनाया था। हालांकि, दुख की बात यह है कि यह बुनकर कला अब
लुप्त होने के कगार पर है। सामान्यत: तीन लोगों को एक पटोला बुनने में पांच से
छह महीने लग जाते हैं।
रोगन कला: लगभग चार सौ साल पुरानी यह कला मूलत: पर्शिया यानी कि आज
के ईरान से आई है। रोगन कला में प्रमुख रूप से तेल और रंग के लिए प्राकृतिक पदार्थ
का उपयोग होता है। जिस पदार्थ का रंग बनाना हो उसका चूर्ण बनाकर रोगन यानी तेल में
मिलाया जाता है। रोगन आर्ट में पिंची या हाथ से नहीं, बल्कि कलम कहे जाने वाले धातु के औजार से कपड़ों पर डिजायन
बनाई जाती है। रोगन कला के लिए कच्छ का निरोणा गांव विश्वविख्यात है। लेकिन
यहां कला में महारत रखनेवालों की संख्या दिन प्रतिदिन कम हो रही है। निरोणा के
निवासी अब्दुल गफूर खत्री को वर्ष २०१९ में भारत सरकार द्वारा उसकी इस कला और
हुनर के लिए पद्मश्री के खिताब से भी नवाजा गया था। साड़ी, ड्रेस,
झोला, कुर्ता, दुपट्टा,
शेरवानी आदि पर रोगन आर्ट किया जाता है।
पिटोरा पेंटिंग: जैसे महाराष्ट्र
के जनजातियों के बीच वारली पेंटिंग प्रसिद्ध है, वैसे ही गुजरात की राठवा, और भील जनजातियों के बीच,
पीठेरा पेंटिंग अत्यंत प्रसिद्ध और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण
है। पारंपरिक रूप से इस पेंटिंग को मिट्टी की दीवारों पर की जाती है। दीवारों की
सतह को पहले मिट्टी और गोबर से तैयार किया जाता है, और फिर
प्राकृतिक रंगों को उपयोग करके उसपर चित्रण किया जाता है। ये पेंटिंग आदिवासी
समुदायों की रीति रिवाज, परंपराओं, मान्यताओं
और संस्कृति को चित्रित करती है। इसके रंग बनाने के लिए दूध और महुआ का उपयोग
किया जाता है। गुजरात का छोटा उदेपुर जिला पिठेारा पेंटिंग के लिए विख्यात है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों की हस्तकला न केवल स्थानीय कला को जीवित रखती है,
बल्कि कलाकारों और बुनकरों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण योगदान देती है। हमें इन कलाओं
को बढ़ाबा देने और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, ताकि यह अमूल्य धरोहर आनेवाली पीढि़यों के लिए सुरक्षित रहे। अगली बार एक
नए विषय के साथ फिर मिलेंगे।
Handicrafts of Gujarat: A glimpse of rich cultural heritage
Hello
friends,
Handicrafts
play an important role in our textile trade. Handicrafts keep alive the unique
culture and traditions of India. The combination of colours, varied designs and fine textures in
handicrafts are an excellent example of the skill of Indian artisans and
weavers. Like other states of India, the handicrafts of Gujarat are also a
distinctive identity of India’s rich cultural heritage. The diversity of
handicrafts of Gujarat is world-famous, and it beautifully reflects the local
culture of Gujarat. Today we will try to understand briefly about some of the
major handicrafts of Gujarat.
Kachchhi embroidery: Kachchhi embroidery done by Ahir, Rabari, Garasia Jat, and Matua
communities of Kachchh region of Gujarat is done with silk threads on cotton
fabrics. This handicraft, usually done by women, has a history dating back to
the 16th and 17th centuries when this community migrated from Sindh province.
In Kachchhi embroidery, various designs such as flowers, leaves, animals,
birds, daily life style, etc. are embroidered
on cotton fabrics using silk threads. It is said that a total of 16 types of
embroidery are done in Kachchh, of which Ahir, Aari, Gotni and Fakirani are
prominent. Aari is considered to be the best quality embroidery, which was done
for the royal family. Glass pieces are also used to brighten the clothes.
Patola of Patan: Patan
city of Gujarat has history preserved in itself. The city is famous for its
architecture as well as Patola sarees. Patola is made using the Bandhani technique.
Patola is a type of silk saree, in which elephants, peacocks, urns, betel
leaves, peak, parrots, etc. are usually engraved with gold and silver threads.
Weavers have to work very hard to make it, and it also takes a lot of time, due
to which its cost is high and its price is also high. During the Mughal period,
this art was adopted by about 250 families. However, the sad thing is that this
weaving art is now on the verge of extinction. Generally, three people take
five to six months to weave a Patola.
Rogan Art: This art,
which is about four hundred years old, originally came from Persia, i.e.,
today's Iran. In Rogan art, mainly oil and natural substances are used for
color. The substance whose color is to be made is powdered and mixed with Rogan
i.e. Oil. In Rogan art, designs are made on clothes not with pinchi or hand,
but with a metal tool called kalam. Nirona village of Kachchh is world-famous
for Rogan Art. But the number of people having mastery in this art is
decreasing day by day. Nirona resident Abdul Gafur Khatri was also awarded the
title of Padmashree by the government of India in the year 2019 for his art and
skill. Rogan art is done on saree, dress, jhola, kurta, dupatta, sherwani etc.
Pitora Painting: Just like
Warli Painting is famous among the tribes of Maharashtra, Pitora Painting is
very famous and culturally important among the Rathwa and Bhil tribes of Gujarat.
Traditionally this painting is done on mud walls. The surface of the walls is
first prepared with mud and cow dung, and then painting is done on it using
natural colors. These paintings depict the customs, traditions, beliefs and
culture of tribal communities. Milk and Mahua are used to make its colors.
Chhota Udaipur district of Gujarat is famous for Pitora Painting. Handicrafts
of different regions of India not only keep the local art alive, but also
contribute significantly from the economic point of view for the artists and
weavers. We should take responsibility to promote and preserve these arts, so
that this valuable heritage remains safe for the coming generations. We will
meet again next time with a new topic.
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